रानी लक्ष्मीबाई
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी रानी।।
जीवनी:
लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी शहर में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था उनका नाम मणिकर्णिका तांबे रखा गया और प्यार से सब उन्हें मनु बुलाते थे । उनके पिता मोरोपंत तांबे और उनकी माँ भागीरथी बाई थीं। जब वह चार साल की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गई थी। उनके पिता कल्याणप्रात के युद्ध के कमांडर थे। उनके पिता ने बिठूर जिले के पेशवा बाजी राव द्वितीय के लिए काम किया। पेशवा उन्हें छबीली कहा करते थे जिसका अर्थ है चंचल । वह पढ़ने और लिखने में सक्षम थी, और बचपन में अपनी उम्र के अन्य लोगों की तुलना में अधिक स्वतंत्र थी उनको पढ़ाई के साथ साथ घुड़सवारी, तलवारबाजी करना अत्यधिक पसंद था और उनके बचपन के दोस्त नाना साहिब और तात्या टोपे के साथ मल्लखंबा शामिल हैं। रानी लक्ष्मीबाई ने भारत में महिलाओं का मान और नारी शक्ति को बढ़ाया और उनका आत्मविश्वास जगाया ।
रानी लक्ष्मीबाई महल और मंदिर के बीच एक छोटे से अनुरक्षण में घोड़े के साथ सवार होने की आदी थीं, हालांकि कभी-कभी उन्हें पालकी द्वारा ले जाया जाता था। रानी लक्ष्मीबाई के घोड़ों में सारंगी, पवन और बादल शामिल थे, बादल उनका प्रिय घोडा था वह 1858 में किले से भागते समय बादल पर सवार थी। रानी लक्ष्मीबाई के महल झाँसी के किले को अब एक संग्रहालय में बदल दिया गया है। इसमें 9 वीं और 12 वीं शताब्दी के बीच की अवधि के पुरातात्विक अवशेषों का संग्रह है । मणिकर्णिका का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधर राव नयालकर से मई 1842 में हुआ था और बाद में देवी लक्ष्मी के सम्मान में और परंपराओं के अनुसार उन्हें लक्ष्मीबाई कहा गया। उन्होंने 1851 में एक लड़के को जन्म दिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया,जो कि झाँसी का उत्तराधिकारी था दामोदर को लेकर सब बहुत प्रसन्न थे क्योंकि आगे जाकर झाँसी की राज गद्दी पर उन्हें विराजमान होना था परन्तु दुर्भाग्य वस् दामोदर की चार महीने बाद मृत्यु हो गई। जिससे पूरे झाँसी में दुःख का माहौल फेल गया और उधर अंग्रेज इस समाचार से बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि वह झाँसी पर भी अपना कब्ज़ा करना चाहते थे,महाराजा गंगाधर राव ने अपने चचेरे भाई के बेटे आनंद राव गोद लिया, जिसे महाराजा के मरने से पहले दामोदर राव नाम दिया गया था। इस समाचार से अंग्रेज बहुत दुखी हुए और उन्होंने उस बच्चे को झाँसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया।
नवंबर 1853 में महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद, दामोदर राव (आनंद राव) एक दत्तक पुत्र थे, इस कारण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी के अधीन, डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स लागू किया, जिसने सिंहासन पर दामोदर राव के दावे को खारिज कर दिया और राज्य को उसके प्रदेशों से अलग कर दिया। जब रानी लक्ष्मीबाई को इस बारे में बताया गया तो उन्होंने अपनी झाँसी को आत्मसमर्पण नहीं करने का निर्णय लिया और झाँसी को उनको ना देने का निर्णय लिया, मार्च 1854 में रानी लक्ष्मीबाई को महल और किले को छोड़ने का आदेश दिया।
1857 की क्रांति:
1857 की क्रांति का कारण धार्मिक कारण था, इस क्रांति में मंगल पाण्डे ने दो ब्रिटिश अधिकारी लेफ्टिनल बाग और मेजर हुसन की 29 मार्च 1857 को हत्या करदी थी, इस घटना के बाद मंगल पाण्डे को 8 अप्रैल 1857 में फांसी दी गयी थी।1857 की क्रांति को भारत का पहला स्वतंत्रता शासक सीतारामैया ने कहा,1857 की क्रांति में भारत का गवर्नर लार्ड केनिंग बना इस क्रांति के समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री लार्ड फार्मस्टन था, इस क्रांति का नेतृत्व बहादुरशाह जफर मुग़ल शाशक ने किया 1857 की क्रांति की तिथि 31 मई 1857 को हुई थी लेकिन क्रांति का प्रारम्भ 10 मई 1857 को मेरठ उत्तरप्रदेश सैनिक छावनी दिल्ली पहुंच गई, इस क्रांति में झाँसी का नेतृत्व महारानी लक्ष्मीबाई ने किया, कानपुर में क्रांति का नेतृत्व तात्या टोपे और नाना साहब ने किया।अगस्त 1857 से जनवरी 1858 तक रानी के शासन में झाँसी में शांति रही। अंग्रेजों ने घोषणा की थी कि नियंत्रण बनाए रखने के लिए सैनिकों को वहां भेजा जाएगा। जब ब्रिटिश सेनाएं मार्च में पहुंचीं तो उन्होंने इसका बचाव किया और किले में भारी तोपें थीं जो शहर और आसपास के ग्रामीण इलाकों में आग लगा सकती थीं। ह्यूग रोज, ब्रिटिश बलों की कमान ने शहर के आत्मसमर्पण की मांग की अगर इसे मना कर दिया गया तो इसे नष्ट कर दिया जाएगा। विचार-विमर्श के बाद रानी ने एक उद्घोषणा जारी की: "हम स्वतंत्रता के लिए लड़ते हैं। भगवान कृष्ण के शब्दों में, यदि हम विजयी हैं, तो हम जीत के फल का आनंद लेंगे, अगर युद्ध के मैदान में पराजित और मारे जाते हैं, तो हम निश्चित रूप से अनन्त होंगे उसने ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ झांसी का बचाव किया जब 23 मार्च 1858 को सर ह्यू रोज ने झांसी को घेर लिया।
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।
1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली।
तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वितीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी,और मर्दो की सेना में एक अकेली मर्द थी।
रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी असाधारण वीरता और साहस से राष्ट्रभक्ति का एक नया अध्याय लिखा,वह नारी शक्ति और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध क्रांति का प्रतिक बनी, स्वाधीनता व स्वाभिमान के लिए उनकाबलिदान अनंत काल तक पूरे विस्व को प्रेरित करता रहेगा।
0 comments:
Post a Comment