Sunday, July 26, 2020

Chhatrapati Shivaji Maharaj In Hindi And Marathi

 Chhatrapati Shivaji Maharaj



 प्रारंभिक जीवन:

छत्रपती शिवाजी महाराज (1630-1680 ई.) भारत के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है। यद्यपि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी, पर वे भारतीय इतिहास और राजनीति से सुपरिचित थे।सन् 1674 में रायगढ़ में उनका राज्यभिषेक हुआ और वह "छत्रपति" बने।भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवनचरित से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया।छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी, 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले तथा उनकी माँ का नाम जीजाबाई (राजमाता जिजाऊ) था। शिवनेरी का दुर्ग पूना (पुणे) से उत्तर की तरफ़ जुन्नर नगर के पास था। उनका बचपन उनकी माता जिजाऊ माँ साहेब के मार्गदर्शन में बीता। वह सभी कलाओं में माहिर थे, उन्होंने बचपन में ही राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा प्राप्त कर ली थी। शिवाजी के बड़े भाई का नाम सम्भाजी था जो अधिकतर समय अपने पिता शाहजी भोसलें के साथ ही रहते थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली भाँति समझने लगे थे। उनके बाल-हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया। अवस्था बढ़ने के साथ विदेशी शासन की बेड़ियां तोड़ फेंकने का उनका संकल्प प्रबलतर होता गया। छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निंबाळकर के साथ लाल महल, पुणे में हुआ था।
उस समय की मांग के अनुसार तथा सभी मराठा सरदारों को एक छत्र के नीचे लाने के लिए छत्रपती शिवाजी  महाराज को 8 विवाह करने पडे़ उनकी पत्नी सईबाई निम्बालकर, सोयराबाई मोहिते, पुतळाबाई पालकर , गुणवन्ताबाई इंगले; सगुणाबाई शिर्के, काशीबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, सकवारबाई गायकवाड़ था।

सैनिक वर्चस्व का आरम्भ:


उस समय बीजापुर का राज्य आपसी संघर्ष तथा विदेशी आक्रमणकाल के दौर से गुजर रहा था। मावल प्रदेश पश्चिम घाट से जुड़ा है और कोई 150 किलोमीटर लम्बा और 30 किलोमीटर चौड़ा है। वे संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण कुशल योद्धा माने जाते हैं। इस प्रदेश में मराठा और सभी जाति के लोग रहते हैं। शिवाजी महाराज इन सभी जाति के लोगों को लेकर मावलों (मावळा) नाम देकर सभी को संगठित किया और उनसे सम्पर्क कर उनके प्रदेश से परिचित हो गए थे। मावल युवकों को लाकर उन्होंने दुर्ग निर्माण का कार्य आरम्भ कर दिया था। मावलों का सहयोग शिवाजी महाराज के लिए बाद में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ। उस समय बीजापुर आपसी संघर्ष तथा मुग़लों के आक्रमण से परेशान था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों या सामन्तों के हाथ सौंप दिया था। जब आदिलशाह बीमार पड़ा तो बीजापुर में अराजकता फैल गई और छत्रपती शिवाजी महाराज ने अवसर का लाभ उठाकर बीजापुर में प्रवेश का निर्णय लिया। शिवाजी महाराज ने इसके बाद के दिनों में बीजापुर के दुर्गों पर अधिकार करने की नीति अपनाई। शिवाजी महाराज ने सबसे पहले रोहिदेश्वर के दुर्ग पर अपना अधिकार जमाया। 

दुर्गों पर नियंत्रण व अधिकार:

रोहिदेश्वर का दुर्ग सबसे पहला दुर्ग था जिस पर छत्रपती शिवाजी महाराज ने सबसे पहले अधिकार किया था। उसके बाद तोरणा का दुर्ग जोपुणे के दक्षिण पश्चिम में 30 किलोमीटर की दूरी पर था। शिवाजी ने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना दूत भेजकर खबर भिजवाई की वे पहले किलेदार की तुलना में बेहतर रकम देने को तैयार हैं और यह क्षेत्र उन्हें सौंप दिया जाये। जब आदिलशाह ने अपने दरबारियों की सलाह के मुताबिक शिवाजी महाराज को उस दुर्ग का अधिपति बना दिया। उस दुर्ग में मिली सम्पत्ति से शिवाजी महाराज ने दुर्ग की सुरक्षात्मक कमियों की मरम्मत का काम करवाया। इससे कोई 10 किलोमीटर दूर राजगढ़ का दुर्ग था और शिवाजी महाराज ने इस दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया। शिवाजी महाराज की इस साम्राज्य विस्तार की नीति की भनक जब आदिलशाह को मिली तो वह क्षुब्ध रह गया। आदिलशाह ने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियन्त्रण में रखने को कहा। शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया और नियमित लगान बन्द कर दिया। राजगढ़ के बाद उन्होंने चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर लिया और उसके बाद कोंडना के दुर्ग पर अधिकार किया। परेशान होकर आदिलशाह ने सबसे काबिल मिर्जाराजा जयसिंह को भेजकर शिवाजी के 23 किलों पर कब्जा किया और उसने पुरंदर के किले को नष्ट कर दिया। इस घटना के बाद शिवाजी को इस संधि कि शर्तो को मानते हुए अपने पुत्र संभाजी को मिर्जाराजा जयसिंह को सौपना पड़ा। बाद में शिवाजी महाराज के मावला तानाजी मालुसरे ने कोंढाणा दुर्ग पर कब्जा किया पर उस युद्ध में वह विरगती को प्राप्त हुए  और इतिहास में उनका नाम अमर हो गया उसकी याद में कोंडना पर अधिकार करने के बाद उसका नाम सिंहगढ़ रखा गया। शाहजी राजे को पुणे और सूपा की जागीरदारी दी गई थी और सूपा का दुर्ग उनके सम्बंधी बाजी मोहिते के हाथ में थी। शिवाजी महाराज ने रात के समय सूपा के दुर्ग पर आक्रमण करके दुर्ग पर अधिकार कर लिया और बाजी मोहिते को शाहजी राजे के पास कर्नाटक भेज दिया। उसकी सेना का कुछ भाग भी शिवाजी महाराज की सेवा में आ गया। इसी समय पुरन्दर के किलेदार की मृत्यु हो गई और किले के उत्तराधिकार के लिए उसके तीनों बेटों में लड़ाई छिड़ गई। दो भाइयों के निमंत्रण पर शिवाजी महाराज पुरन्दर पहुंचे और कूटनीति का सहारा लेते हुए उन्होंने सभी भाइयों को बन्दी बना लिया। इस तरह पुरन्दर के किले पर भी उनका अधिकार स्थापित हो गया। 1647 ईस्वी तक वे चाकन से लेकर नीरा तक के भूभाग के भी अधिपति बन चुके थे। अपनी बढ़ी सैनिक शक्ति के साथ शिवाजी महाराज ने मैदानी इलाकों में प्रवेश करने की योजना बनाई।
एक अश्वारोही सेना का गठन कर शिवाजी महाराज ने आबाजी सोन्देर के नेतृत्व में कोंकण के विरुद्ध एक सेना भेजी। आबाजी ने कोंकण सहित नौ अन्य दुर्गों पर अधिकार कर लिया। इसके अलावा ताला, मोस्माला और रायटी के दुर्ग भी शिवाजी महाराज के अधीन आ गए थे। लूट की सारी सम्पत्ति रायगढ़ में सुरक्षित रखी गई। कल्याण के गवर्नर को मुक्त कर शिवाजी महाराज ने कोलाबा की ओर रुख किया और यहाँ के प्रमुखों को विदेशियों के ख़िलाफ़़ युद्ध के लिए उकसाया।

मुगलों से संघर्ष:



छत्रपती शिवाजी महाराज के बीजापुर तथा मुगल दोनों शत्रु थे। उस समय मुग़ल बादशाह औरंगजेब दक्कन का सूबेदार था। इसी समय 1 नवम्बर 1656 को बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु हो गई जिसके बाद बीजापुर में अराजकता का माहौल पैदा हो गया। इस स्थिति का लाभ उठाकर औरंगज़ेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया और शिवाजी ने औरंगजेब का साथ देने की बजाय उसपर धावा बोल दिया। उनकी सेना ने जुन्नार नगर पर आक्रमण कर ढेर सारी सम्पत्ति के साथ लगभग 200 घोड़े लूट लिये और अहमदनगर से 700 घोड़े, चार हाथी के अलावा उन्होंने गुण्डा तथा रेसिन के दुर्ग पर भी लूटपाट मचाई। इसके परिणामस्वरूप औरंगजेब शिवाजी से खफ़ा हो गया और मैत्री वार्ता समाप्त हो गई। शाहजहां के आदेश पर औरंगजेब ने बीजापुर के साथ सन्धि कर ली और इसी समय शाहजहां बीमार पड़ गया। उसके व्याधिग्रस्त होते ही औरंगज़ेब उत्तर भारत चला गया और वहां शाहजहां को कैद करने के बाद मुगल साम्राज्य का बादशाह  बन गया।
उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियन्त्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ लगभग  अपने 1,50,000 फ़ौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया और उसने ३ साल तक मावल में लूटमार की । एक रात शिवाजी ने अपने लगभग 350 मवलो के साथ उनपर हमला कर दिया, शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र अबुल फतह तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया।

आगरा में आमंत्रण और पलायन:


सन्धि के लिए छत्रपती शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके विरोध में उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरबन्द कर दिया और उनपर  सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद 18 अगस्त 1666 को राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अदम्य साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे  सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी महाराज बनारस, गये, पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए । इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। पर, सिंहगढ़ और पुरन्दर पर मुग़लों का अधिपत्य बना रहा। सन् 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लूटा। नगर से 132 लाख की सम्पत्ति शिवाजी के हाथ लगी और लौटते वक्त उन्होंने मुगल सेना को सूरत के पास फिर से हराया।

राज्याभिषेक:

सन् 1674 तक छत्रपती शिवाजी महाराज ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की सन्धि के अन्तर्गत उन्हें मुग़लों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु मुस्लिम सैनिको ने ब्राहमणों को धमकी दी कि जो भी शिवाजी का राज्याभिषेक करेगा उनकी हत्या कर दी जायेगी जब ये बात शिवाजी तक पहुंची की मुगल सरदार ऐसे धमकी दे रहे है तब शिवाजी ने इसे एक चुनौती के रुप मे लिया और मुग़लो को चुनौती दी और कहा की अब वो उस राज्य के ब्राह्मण से ही अभिषेक करवायेंगे जो मुगलों के अधिकार में है, जिससे मुग़ल भी छुब्ध रह गए सन् 1674 में रायगढ़ में उनका राज्यभिषेक हुआ ।
सन् 1677-78 में शिवाजी का ध्यान कर्नाटक की ओर गया। बम्बई के दक्षिण में कोंकण, तुंगभद्रा नदी के पश्चिम में बेळगांव तथा धारवाड़ का क्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूर तथा जिंजी पर अधिकार करने के बाद ३ अप्रैल, 1680 को शिवाजी का देहान्त हो गया।

मृत्यु और उत्तराधिकार:

 छत्रपती शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 में हुई। उस समय शिवाजी के उत्तराधिकार संभाजी को मिले। शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र संभाजी थे और दूसरी पत्नी से राजाराम नाम एक दूसरा पुत्र था। उस समय राजाराम की उम्र मात्र 10 वर्ष थी अतः मराठों ने शम्भाजी को राजा मान लिया। उस समय औरंगजेब राजा शिवाजी का देहान्त देखकर अपनी पूरे भारत पर राज्य करने कि अभिलाषा से अपनी 5,00,000 सेना सागर लेकर दक्षिण भारत जीतने निकला। औरंगजेब ने दक्षिण में आते ही अदिल्शाही 2 दिनो में और कुतुबशाही 1ही दिनो में खतम कर दी, पर राजा सम्भाजी के नेतृत्व में मराठाओ ने 4 साल युद्ध करते हुये अपनी 
स्वतन्त्रता बरकरा‍र रखी। औरंगजेब ने अब फिर जोरदार तरीके से संभाजी के ख़िलाफ़ आक्रमण करना शुरु किया। उसने अन्ततः 1689 में संभाजी  की मुखबरी से संभाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बना लिया। औरंगजेब ने राजा संभाजी से बदसलूकी की और कई दिनों तक तड़पाया और बुरा हाल कर के मार दिया। अपनी राजा कि औरंगजेब द्वारा की गई बदसलूकी  द्वारा मारा हुआ देखकर पूरा मराठा स्वराज्य क्रोधित हुआ। उन्होने अपनी पुरी ताकत से राजाराम के नेतृत्व में मुगलों से संघर्ष जारी रखा। 1700 इस्वी में राजाराम की मृत्यु हो गई। उसके बाद राजाराम की पत्नी ताराबाई 4 वर्षीय पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका बनकर राज करती रही। आखिरकार 25 साल मराठा स्वराज्य से युद्ध लड के थके हुये औरंगजेब की उसी छ्त्रपती शिवाजी के स्वराज्य में दफन हुआ।

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                     छत्रपती शिवाजी महाराज

 लवकर जीवन:

छत्रपती शिवाजी महाराज (1630-1680) हे भारतातील एक महान राजा आणि रणनीतिकार होते, ज्यांनी १ 1674 ई मध्ये पश्चिम भारतात मराठा साम्राज्याचा पाया घातला. शिवाजी एक कुशल आणि प्रबुद्ध सम्राट म्हणून ओळखले जातात. बालपणात त्यांना पारंपारिक शिक्षण फारसे मिळाले नसले तरी ते भारतीय इतिहास आणि राजकारणाशी परिचित होते १ 1674 मध्ये ते रायगडमध्ये विराजमान झाले आणि "छत्रपती" झाले. भारताच्या स्वातंत्र्यलढ्यातले अनेक लोक, छत्रपती शिवाजी महाराज आयुष्याच्या प्रेरणेने त्यांनी आपल्या स्वातंत्र्यासाठी आपले शरीर, मन आणि संपत्तीचे बलिदान दिले छत्रपती शिवाजी महाराजांचा जन्म 16 फेब्रुवारी 1630 रोजी शिवनेरी किल्ल्यावर झाला. त्यांच्या वडिलांचे नाव शाहजी भोसले आणि आईचे नाव जिजाबाई (राजमाता जिजाऊ) होते. शिवनेरीचा किल्ला उत्तरेकडे जुन्नर नगरच्या दिशेने पूणा (पुणे) जवळ होता. त्यांचे बालपण त्यांचे आई जिजाऊ माँ साहेब यांच्या मार्गदर्शनाखाली घालवले गेले. ते सर्व कलांमध्ये पारंगत होते, त्यांनी बालपणात राजकारणाचे आणि युद्धाचे शिक्षण घेतले. शिवाजीच्या मोठ्या भावाचे नाव संभाजी होते, जे बहुतेक वेळा वडील शहाजी भोसले यांच्यासमवेत राहत असत. शिवाजी महाराजांच्या चारित्र्यावर पालकांचा मोठा प्रभाव होता. लहानपणापासूनच त्या काळातील वातावरण आणि घटना त्यांना चांगल्या प्रकारे समजण्यास सुरवात झाली. स्वातंत्र्याची ज्योत त्याच्या मुलाच्या हृदयात पेटली. त्याने एकत्र येऊन काही विश्वासू मित्रांना एकत्र केले. परिस्थिती जसजशी वाढत गेली तसतसे परकीय सत्तेचे बंधन तोडण्याचा त्याचा संकल्प दृढ झाला. छत्रपती शिवाजी महाराजांचे 14 मे 1640 रोजी साईबाई निंबाळकर यांच्याशी लाल महाल, पुणे येथे लग्न झाले होते.

काळाच्या मागणीनुसार आणि सर्व मराठा सरदारांना एका छत्राखाली आणण्यासाठी छत्रपती शिवाजी महाराजांना त्यांची पत्नी साईबाई निंबाळकर, सोयराबाई मोहिते, पुथाबाई पालकर, गुणवंतबाई इंगळे यांच्यासह  विवाह करावे लागले; सगुणाबाई शिर्के, काशिबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, सकरबाई गायकवाड.

सैनिकी वर्चस्वाची सुरुवात:

त्यावेळी विजापूरचे राज्य परस्पर लढाई आणि परकीय हल्ल्याच्या काळातून जात होते. मावळ प्रदेश हे पश्चिम घाटाशी जोडलेले आहे आणि सुमारे 150 km० किमी लांबीचे आणि 30 km० किमी रूंदीचे आहे. संघर्षशील आयुष्य जगल्यामुळे ते कुशल योद्धा मानले जातात. मराठा आणि सर्व जातींचे लोक या भागात राहतात. शिवाजी महाराजांनी या सर्व जातींतील लोकांना घेतले आणि त्यांचे नाव मावळ (मावळ) ठेवले आणि सर्वांना संघटित केले आणि त्यांच्या राज्याशी परिचित झाले. मावळातील तरुणांना घेऊन त्यांनी किल्ल्याचे बांधकाम सुरू केले होते. शिवाजी महाराजांना नंतर मावळ्यांचा पाठिंबा खूप महत्वाचा ठरला. त्यावेळी विजापूर परस्पर संघर्ष आणि मोगल स्वारीमुळे त्रस्त झाले होते. आदिलशहाच्या विजापूरच्या सुलतानाने आपले सैन्य अनेक तटबंदीवरून काढून स्थानिक स्थानिक राज्यकर्ते किंवा सरंजामशाहीच्या स्वाधीन केले. आदिलशहा आजारी पडल्यावर विजापूरमध्ये अराजकता पसरली आणि शिवाजी महाराजांनी संधीचा फायदा घेत विजापूरमध्ये प्रवेश करण्याचा निर्णय घेतला. शिवाजी महाराजांनी नंतरच्या काळात विजापूरच्या किल्ल्यांवर नियंत्रण ठेवण्याचे धोरण स्वीकारले. शिवाजी महाराजांनी सर्वप्रथम रोहिदेश्वरच्या किल्ल्यावर आपले अधिकार सांभाळले.

गढी नियंत्रण:

रोहिदेश्वरचा किल्ला पहिला किल्ला होता ज्यावर शिवाजी महाराजांचा पहिला अधिकार होता. तोप्नाचा किल्ला त्यावेळी जोपेनेच्या नैत्येकडे 30 किलोमीटर अंतरावर होता. शिवाजीने आपला दूत सुलतान आदिलशहाकडे पाठवला आणि त्याला सांगितले की तो पहिल्या किल्ल्यापेक्षा चांगली रक्कम देण्यास तयार आहे आणि त्याने हा विभाग त्यांच्या ताब्यात दिला. जेव्हा आदिलशहाने आपल्या दरबारींच्या सल्ल्यानुसार शिवाजी महाराजांना त्या किल्ल्याचा राजा म्हणून बनविले. त्या किल्ल्यात मिळणारी मालमत्ता, शिवाजी महाराजांना किल्ल्याच्या संरक्षणात्मक कमतरतेसाठी दुरुस्तीचे काम झाले. त्याच्यापासून दहा किलोमीटर अंतरावर राजगडचा किल्ला होता आणि शिवाजी महाराजांनीही या किल्ल्याचा ताबा घेतला. शिवाजी महाराजांच्या या साम्राज्याच्या विस्ताराच्या धोरणाची कल्पना आदिलशहाला मिळाली तेव्हा ते चिडले. आदिलशहाने शहाजी राजांना आपल्या मुलाला ताब्यात ठेवण्यास सांगितले. शिवाजी महाराजांनी वडिलांचा विचार न करता आपल्या वडिलांच्या प्रांताचे व्यवस्थापन हातात घेतले आणि नियमित भाडे बंद केले. राजगडा नंतर त्यांनी चाकणचा किल्ला आणि नंतर कोंडाणा किल्ला ताब्यात घेतला. त्रास झाला, आदिलशहाने सर्वात सक्षम मिर्झाराजा जयसिंगला पाठवले आणि शिवाजीचे 23 किल्ले ताब्यात घेतले आणि पुरंदरचा किल्ला नष्ट केला. या घटनेनंतर या कराराच्या अटी ठेवून शिवाजीला आपला मुलगा संभाजी मिर्झाराजा जयसिंग यांच्याकडे सोपवावा लागला. नंतर शिवाजी महाराजांच्या मावळ तानाजी मालुसरे याने कोंढाणा दुर्ग ताब्यात घेतला परंतु त्या युद्धामध्ये त्यांना वीरगती मिळाली आणि इतिहासात त्याचे नाव अमर झाले, त्यांनी कोंढना काबीज केल्याची आठवण झाल्यावर त्याचे नाव सिंहगड ठेवले गेले. शहाजी राजे यांना पुणे व सुपाचे वासेल्स देण्यात आले आणि सुपाचा किल्ला त्याचा नातेवाईक बाजी मोहिते यांच्या ताब्यात होता. शिवाजी महाराजांनी रात्री सुपा किल्ल्यावर हल्ला केला आणि किल्ल्याचा ताबा घेतला आणि बाजी मोहिते यांना कर्नाटकातील शहाजी राजे यांच्याकडे पाठविले. त्यांच्या सैन्याचा काही भाग शिवाजी महाराजांच्या सेवेतही आला. त्याच वेळी, पुरंदरचा किल्ला मरण पावला आणि किल्ल्याच्या उत्तरासाठी त्याच्या तीन मुलांमध्ये भांडण झाले. दोन भावांच्या निमंत्रणावरून शिवाजी महाराज पुरंदरला पोहोचले आणि त्यांनी मुत्सद्देगिरी करून सर्व भावांना अटक केली. अशा प्रकारे, त्याचा अधिकार पुरंदरच्या किल्ल्यावरही स्थापित झाला. इ.स. १1647 पर्यंत ते चाकण ते नीरा या प्रदेशाचा राज्यकर्ताही बनले होते.

मोगलांशी प्रथम सामना:


शिवाजीला विजापूर व मोगल दोन्ही शत्रू होते. त्यावेळी मुघल बादशहा औरंगजेब हा डेक्कनचा सुभेदार होता. त्याच वेळी विजापूरचा सुलतान आदिलशहा १ नोव्हेंबर 1556 रोजी मरण पावला, त्यानंतर विजापूरमध्ये अनागोंदीचे वातावरण निर्माण झाले. या परिस्थितीचा फायदा घेत औरंगजेबाने विजापूरवर आक्रमण केले आणि औरंगजेबाला पाठिंबा देण्याऐवजी शिवाजींनी त्यांच्यावर हल्ला केला. त्याच्या सैन्याने जुन्नर शहरावर हल्ला केला आणि अहमदनगरहून सुमारे 200 घोडे आणि 700 घोडे लुटले, चार हत्तींच्या व्यतिरिक्त त्याने गुंडा व राळ यांचा किल्ला लुटला. परिणामी औरंगजेब शिवाजीवर नाराज झाला आणि मैत्रीची चर्चा संपली. शाहजहांच्या आदेशानुसार औरंगजेबाने विजापूरशी तह केला आणि त्याचवेळी शाहजहां आजारी पडला. औरंगजेब पीडित होताच उत्तर भारतात गेले आणि तेथे शाहजहांला कैद करून मुघल साम्राज्याचा सम्राट बनला.

उत्तर भारतात राजा होण्याची शर्यत संपल्यानंतर औरंगजेबाचे लक्ष दक्षिणेकडे लागले. शिवाजीच्या वाढत्या सार्वभौमत्वाची त्यांना जाणीव होती आणि त्यांनी शिवाजीवर नियंत्रण ठेवण्याच्या उद्देशाने आपले मामा शाइस्ता खान यांना दक्षिणेचे सुभेदार म्हणून नियुक्त केले. शैस्का खानने सुमारे 1,50,000 सैन्य घेऊन सुपान आणि चाकण किल्ल्याचा ताबा घेतला आणि 3 वर्षांपर्यंत पूना गाठला. एका रात्री शिवाजीने त्याच्यावर सुमारे  350० मावळोंनी हल्ला केला, शायस्ता खिडकीतून पळून जाण्यात यशस्वी झाला पण त्या क्रमाने आपले हात चार बोटांनी धुवावे लागले. शाइस्ताखानचा मुलगा अबुल फताह आणि चाळीस रक्षक आणि असंख्य सैनिक ठार झाले.

आग्रा मध्ये आमंत्रण आणि निर्वासन:

या करारासाठी शिवाजीला आग्रा येथे बोलविण्यात आले जेथे त्यांना असे वाटले की त्यांचा योग्य आदर मिळत नाही. याचा निषेध म्हणून त्यांनी आपल्या श्रीमंत दरबारात हजर केले आणि औरंगजेबावर विश्वासघात केल्याचा आरोप केला. औरंगजेबाला याचा राग आला आणि त्याने शिवाजीला ताब्यात घेतले आणि त्याला पहारा दिला. औरंगजेबाने काही दिवसांनंतर 18 ऑगस्ट 1666 रोजी राजा शिवाजीचा वध करण्याचा इरादा केला. परंतु त्याच्या अदम्य धैर्याने आणि चातुर्याने शिवाजी व संभाजी दोघेही यातून सुटू शकले, संभाजीला मथुरा येथील विश्वासू ब्राह्मणांसमवेत सोडले, शिवाजी महाराज बनारीस, पुरी येथे गेले आणि सत्यल राजगडला पोहोचले. यामुळे मराठ्यांना नवीन जीवनदान मिळाले. औरंगजेबाने जयसिंगवर संशय घेतला आणि विष प्राशन करुन त्यांची हत्या केली. 1668 मध्ये जसवंतसिंग यांनी पुढाकार घेतल्यानंतर शिवाजींनी मोगलांशी दुसरा करार केला. औरंगजेबाने शिवाजीला राजा म्हणून ओळखले. शिवाजींचा मुलगा शंभाजीला 5000००० ची मनसबदारी मिळाली आणि शिवाजी परत, चाकण आणि सौपा या जिल्ह्यात परत आला. तथापि, सिंहगड आणि पुरंदरवर मोगल कारवाया कायम राहिले. 1670 मध्ये शिवाजीने दुस्यांदा सुरत शहर लुटले. शिवाजीला शहराकडून 132 लाखांची मालमत्ता मिळाली आणि परत येताना त्यांनी सूरत जवळ पुन्हा मुघल सैन्याचा पराभव केला.

राज्याभिषेक:

1674 पर्यंत शिवाजीने पुरंदरच्या कराराखाली मुघलांना जी जमीन द्यायची होती ती सर्व प्रदेश ताब्यात घेतली. पश्चिम महाराष्ट्रात स्वतंत्र हिंदु राष्ट्राची स्थापना झाल्यानंतर शिवाजींना राज्याभिषेकाची इच्छा होती, परंतु मुस्लिम सैनिकांनी ब्राह्मणांना धमकावले की ज्याने शिवाजीला राज्याभिषेक केला असेल त्याला ठार मारले जाईल जेव्हा शिवाजी पोचला की मुघल सरदार अशा प्रकारच्या धमक्या देत आहेत. मग शिवाजींनी हे आव्हान म्हणून स्वीकारले आणि मोगलांना आव्हान दिले आणि म्हणाले की आता ते मोगलांच्या अखत्यारीत असलेल्या राज्यातल्या ब्राह्मणांना अभिषेक करतील, ज्या मुघलांनीही 1674 मध्ये रायगडमध्ये अभिषेक केला. .

1677-78 मध्ये शिवाजी यांचे लक्ष कर्नाटककडे गेले. ३ अप्रैल 1680० रोजी तुंगभद्रा नदीच्या पश्चिमेला कोंकण, बेळगाव आणि धारवाड प्रदेश, मुंबई, बॉम्बेच्या दक्षिणेस, म्हैसूर, वलारी, त्रिचूर आणि जिंजी ताब्यात घेतल्यावर शिवाजी यांचे निधन झाले.

मृत्यू आणि वारसाहक्क:

 शिवाजी महाराजांचे 3 एप्रिल 1680 रोजी निधन झाले. त्यावेळी संभाजीला शिवाजीच्या वारसांचा वारसा मिळाला. शिवाजीला मोठा मुलगा संभाजी आणि दुसरा मुलगा राजाराम नावाचा दुसरा मुलगा होता. त्यावेळी राजाराम अवघ्या दहा वर्षांचा होता, म्हणून मराठ्यांनी शंभाजीला राजा म्हणून स्वीकारले. आपल्या संपूर्ण भारतावर राज्य करण्याची इच्छा बाळगून त्या काळात औरंगजेब राजा शिवाजींचा मृत्यू झाल्याचे पाहून ते आपल्या 500,000 सैन्यासह दक्षिण भारत जिंकण्यासाठी निघाले. औरंगजेबाने आदिलशाही 2 दिवसांत आणि कुतुब शाही दक्षिणेस येताच 1  दिवसांत पूर्ण केला, परंतु राजा संभाजीच्या नेतृत्वात मराठ्यांनी 4 वर्षे लढा देऊन त्यांचे स्वातंत्र्य राखले. औरंगजेबाने आता जोरदारपणे संभाजीविरूद्ध हल्ले करण्यास सुरवात केली. शेवटी संभाजीच्या तोंडाने त्यांनी संभाजीला 1689 मध्ये मुकरव खानने कैदी बनविले. औरंगजेबाने राजा संभाजीशी गैरवर्तन केले आणि बर्‍याच दिवस छळ केला व त्याला ठार केले. औरंगजेबाच्या गैरवर्तनानंतर त्याचा राजा मारला गेला हे पाहून संपूर्ण मराठा स्वराज्य संतापला. त्यांनी आपल्या संपूर्ण सामर्थ्याने राजारामच्या नेतृत्वात मोगलांशी संघर्ष सुरू ठेवला. राजाराम यांचा 1700 ए मध्ये मृत्यू झाला. त्यानंतर राजारामची पत्नी ताराबाई यांनी-वर्षाचा मुलगा शिवाजी II ची पालक म्हणून राज्य केले. अखेरीस, 25 वर्षे मराठा स्वराज्याशी लढाई करुन कंटाळून औरंगजेबाला शिवाजी शिवाजीच्या त्याच राज्यात पुरण्यात आले.










sumit yaduvanshi

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