सिन्धुघाटी सभ्यता
इस सभ्यता की सर्वप्रथम खुदाई 1921 में दयाराम साहनी के नेतृत्व में पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मांटगोमरी जिले में हड़प्पा नामक स्थान पर हुई। उसके बाद 1922 में राखलदास बनर्जी द्वारा पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में मोहन जोदड़ो नामक स्थान पर करवाई गई। सिन्धुघाटी सभ्यता छेत्रफल में अपने समकालीन विश्व की सबसे बड़ी सभ्यता थी। इस सभ्यता का कुल क्षेत्रफल 12, 99, 600 km² था, यह सभ्यता त्रिभुजाकार में फैली थी। इस सभ्यता का विस्तार पाकिस्तान के सिंधु, बलूचिस्तान, और पंजाब प्रान्त में तथा भारत के जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, गुजरात तथा महाराष्टृ में है। इस सभ्यता को पहले सिन्धुघाटी सभ्यता या सिंधु सभ्यता कहा जाता था, अब इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस सभ्यता की सबसे पहले खुदाई हड़प्पा में हुई थी।
" सिन्धुघाटी सभ्यता का विस्तार "
पाकिस्तान:-
ब्लूचिस्तान प्रान्त में - सुत्कांगेडोर, सुत्काकोह, डाबरकोट
सिन्ध प्रान्त में - मोहनजोदड़ो, अलीमुरीद, कोटदीजी, चन्हूदड़ो
पंजाब प्रान्त में - हड़प्पा
भारत में :-
जम्मू-कश्मीर प्रान्त में - मांडा
पंजाब प्रान्त में - रोपड़, संघोल, बाड़ा
हरियाणा प्रान्त में - बनवाली, राखीगढ़ी, मित्ताथल
राजस्थान प्रान्त में - कालीबंगा, पीलीबंगा
गुजरात प्रान्त में - लोथल, रंगपुर, भगवंतराव, सुरकोटदा
उत्तरप्रदेश में - आलमगीरपुर
महाराष्टृ में - दैमाबाद
नदियों के किनारे से प्रमुख नगर:
मोहन जोदड़ो - सिंधुनदी
हड़प्पा - रावी नदी
रोपड़ - सतलज
कालीबंगा - घंघर
लोथल - भोगवा
रंगपुर - मादर
आलमगीरपुर - हिन्डन
कोटदीजी - सिंधु
सिन्धुघाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल :
हड़प्पा :- यहाँ पर मजदूरों के आवस के साक्ष्य मिले R-37 नाम का कब्रिस्तान, पीतल का बना इक्का, 6-6 पंक्तियों में निर्मित कुल 12 कमरों वाले अन्नागार के अवशेष, और कुम्हारो के 14 भट्टे मिले।
मोहनजोदड़ो :- मृतकों का टीला कहा गया है, यहाँ पर एक टीले पर 38 शवों को एक साथ दफनाया गया। मोहनजोदड़ो को सिंध का बगीचा भी कहा गया, यह सिंधुघाटी सभ्यता का सबसे बड़ा नगर है, खुदाई में 7 स्तर मिले, विशाल स्नानगृह मिला, इसका उपयोग किसी धार्मिक प्रयोजन के लिए होता होगा। इस सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत यहाँ का विशाल अन्नागार है। कांसे की बनी नर्तकी की मूर्ति मिली, हाथी का कपाल मिला, सूती कपडे के साक्ष्य मिले जो चांदी के बर्तन पर लिपटे है, पिघले हुए ताम्बे का ढेर मिला है।
कालीबंगा :- यहाँ काली मिट्टी कि चूड़ियां मिली है, यहाँ पर हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा दोनों के अवशेष मिले है, हल से जुते खेत के शाक्ष्य मिले है। कालीबंगा में मकानों के फर्श अलंकृत है।
लोथल :-
लोथल के पूर्वी भाग में बन्दरगाह स्थित है। फारस की मोहर मिली है, चावल के शाक्ष्य मिले है, घोड़े की मूर्तियां मिली है।
बनवाली :- बनवाली हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित था, मिट्टी के बने हल का खिलौना मिला, तिल, सरसो आदि फसले मिली।
चन्हूदड़ो :- यहाँ नगर मोहनजोदड़ो से 130 km धकशीद में स्थित हे। बैलगाड़ी के शाक्ष्य मिले।
रंगपुर :- गुजरात में अहमदाबाद जिले के मदार नदी के किनारे है।
सुरकोटदा :- यह गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है। यहाँ से हड़प्पा सभ्यता के पतन के अवशेष मिलते है, यहाँ से घोड़े की हड्डियों अवशेष मिले है।
कोटदीजी :- यह पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में खैरपुर नामक स्थान पर स्थित है।
आलमगीरपुर :- यह उत्तरप्रदेश के मेरठ जिले में हिन्डन नदी के किनारे स्थित है।
धौलावीरा :-
गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है।
" सिन्धुघाटी सभ्यता की विशेषताएँ "
सिन्धुघाटी सभ्यता कांस्ययुगीन सभ्यता थी। इस सभ्यता के लोग तांबा और टिन को मिलाकर कांसा बनाना सीख गए थे। सिन्धु घाटी सभ्यता नगरीय सभ्यता थी। सिंधु घाटी सभ्यता के नगर नियोजित तरीके से बसाए गये थे। सिंधुघाटी सभ्यता में सड़के कच्ची होती थी जो एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। सड़को के दोनों ओर पक्की ईटों द्वरा नालियों का निर्माण किया जाता था जाता था। नालियों को पत्थर या लकड़ी द्वारा ढक दिया जाता था। यहाँ के लोग सफाई ओर स्वास्थय का विशेष ध्यान रखते थे। घरो के खिड़की दरवाजे सड़क की ओर न खुलकर पीछे गली की ओर खुलते थे। सिंधु घाटी सभ्यता में मकान बनाने के लिए पक्की इंटो का प्रयोग किया जाता था।
सामाजिक स्थिति :- सिन्धु घाटी सभ्यता में समाज जाति-व्यवस्था पर आधारित नहीं था बल्कि समाज वर्ग व्यवस्था पर आधारित था। समाज चार वर्गों में बटा था - पुरोहित वर्ग, सैनिक, व्यापारी, शिल्पकार, श्रमिक, कृषक।
आर्थिक स्थिति :- इस सभ्यता के लोग कृषि, पशुपालन, उधोग धंदे और व्यापर करते थे। ये लोग लकड़ी के हल से खेत जोतकर कृषि कार्य करते थे। इस सभ्यता के लोग गेंहू, जौ, मटर, सरसों, चावल, तिल, कपास, बाजरा, तरबूज और खरबूज की खेती करते थे।
पशुपालन :- बैल, भेड़, बकरी, भैंस, गाय, सुअर, कुत्ते और गधे पालते थे। प्रारम्भ में घोड़े के साक्ष्य नहीं मिले पर बाद में लोथल और रागपुर से घोड़े की मृण्मूर्तियां और सुरकोटदा से घोड़े का कंकाल मिला।
उधोग धन्दे :- इस सभ्यता में कताई बुनाई का व्यवसाय प्रमुख था। सूती और ऊनी कपडे बनाये जाते थे।कुम्हार चाक के प्रयोग से बर्तन बनाते थे।
व्यापार :- इस सभ्यता के लोग देश के अंदर और विदेशो के साथ व्यापार करते थे, यह जल और स्थल दोनों मार्गो से व्यापर करते थे।
" विभिन्न छेत्रो से आयात की वस्तुएँ "
चांदी - ईरान, अफगानिस्तान
सोना - राजस्थान के खेतड़ी से
तांबा - राजस्थान के खेतड़ी से
टिन - अफगानिस्तान, ईरान
सेलखड़ी - बलूचिस्तान, राजस्थान
संगमरमर - राजस्थान
धार्मिक स्थिति - इस सभ्यता के लोग मूर्ति पूजा करते थे। लेकिन इस सभ्यता से कही से भी मंदिर के साक्ष्य नहीं मिले। इस सभ्यता में लोग मातृदेवी की पूजा करते थे।
राजनीतिक स्थिति :- इस सभ्यता में राजमहलों और दुर्गो के मिलने से अनुमान लगाया जाता है कि यहां कोई शासक वर्ग अवस्य था। सत्ता किसके हाथ में थी यह स्पस्ट नहीं था।
सिन्धु घाटी सभ्यता के निर्माता - सबसे अधिक कंकाल भूमध्यसागरीया लोगो के मिले। इसलिए इन्हे सिन्धु सभ्यता का निर्माता है।
सिन्धु घाटी लिपि - इस लिपि को अभी तक नहीं पढ़ा गया है, यह लिपि दांये से बांये ओर लिखी जाती थी, इस लिपि के 400 चिन्ह प्राप्त हुए है।
सिन्धु सभ्यता की मोहरे :- मोहरों का निर्माण अधिकतम सेलखड़ी से हुआ है। मोहरों में ज्यादा एक सींग वाला बैल अंकित है।
सिन्धु सभ्यता मूर्तियां :- मूर्तियां, पत्थर, धातु और मिट्टी की बनी हुई थी। मोहनजोदड़ो से सेलखड़ी की मूर्ति प्राप्त हुई है। मोहनजोदड़ो से कांसे की बनी 14 CM ऊँची नृत्य करती हुई स्त्री की मूर्ति मिली।
सिन्धु सभ्यता का पतन :- सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के लिए के लिए कोई एक निश्चित कारण नहीं बताया जा सकता। विभिन्न इतिहासकारो ने इसके अलग-अलग कारण बताये।
जॉन मार्शल और अर्नेस्ट मैके ने बाढ़ का कारण बताया।
मार्टिन व्हीलर और गार्डन चाइल्ड चाइल्ड के अनुसार, यह सभ्यता विदेशी आक्रमण से समाप्त हुई।
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